वो एहतियात का आलम पस-ए-सवाल कोई बचा है रात के हमले से बाल बाल कोई दिखाई देती है पहले तो रौशनी घर की नफ़ी में सर को हिलाता है फिर ख़याल कोई धड़क रहा है दुआओं की रौनक़ें ले कर मिरे वजूद-ए-गुरेज़ाँ में ला-ज़वाल कोई मिलेंगे ख़्वाब भी दीदार करने वालों में पड़ा है पेड़ की छाँव में पाएमाल कोई