वो एक ग़म कि सहारा था ज़िंदगी के लिए भुला रहा हूँ उसे भी तिरी ख़ुशी के लिए तो यूँ ख़याल के दरवाज़े हम पे बंद न कर हज़ार शहर खुले होंगे अजनबी के लिए जहाँ में कौन बचा है हमारे क़त्ल के बा'द जो तेरी ज़ुल्फ़ मचलती है बरहमी के लिए ख़िज़ाँ का दौर चमन में नया नहीं है मगर कली कली न तरसती थी ताज़गी के लिए हर एक सम्त सराबों के क़ाफ़िले हैं रवाँ नज़र नज़र में बयाबाँ है आदमी के लिए जिगर के दाग़ छुपाए कभी जो हम ने 'ख़लील' अंधेरे दिल में उतर आए रौशनी के लिए