वो इक हसीं कभी तन्हा नहीं निकलता है

वो इक हसीं कभी तन्हा नहीं निकलता है
कि जैसे चाँद अकेला नहीं निकलता है

हर आदमी से वफ़ा की उमीद मत रक्खो
हर इक ज़मीन से सोना नहीं निकलता है

घरों में चारों तरफ़ क़ुमक़ुमे तो रौशन हैं
मगर दिलों से अँधेरा नहीं निकलता है

कुछ इम्तिहान फ़क़त इम्तिहान होते हैं
हर इम्तिहाँ का नतीजा नहीं निकलता है

कभी कभी बड़ी मुश्किल से बात बनती है
ग़ज़ल का शे'र हमेशा नहीं निकलता है

हमारे दर्द की दौलत फ़क़त हमारी है
ज़माने जा तिरा हिस्सा नहीं निकलता है

'कमाल' अब तो अदू की शनाख़्त मुश्किल है
हर एक बम से फ़लीता नहीं निकलता है


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