वो एक शोर सा ज़िंदाँ में रात भर क्या था मुझे ख़ुद अपने बदन में किसी का डर क्या था कोई तमीज़ न की ख़ून की शरारत ने इक अब्र ओ बाद का तूफ़ाँ था दश्त ओ दर क्या था ज़मीं पे कुछ तो मिला चंद उलझनें ही सही कोई न जान सका आसमान पर क्या था मिरे ज़वाल का हर रंग तुझ में शामिल है तू आज तक मिरी हालत से बे-ख़बर क्या था अब ऐसी फ़स्ल में शाख़ ओ समर पे बार न बन ये भूल जा कि पस-ए-साया-ए-शजर क्या था चटख़ती गिरती हुई छत उजाड़ दरवाज़े इक ऐसे घर के सिवा हासिल-ए-सफ़र क्या था