वो हवा का मिज़ाज रखते हैं हम चराग़ों की तरह जलते हैं उस की क़ुदरत को देख कर यारो हम भी ईमान उस पे रखते हैं झूम कर तो उठे हैं ये बादल देखिए अब कहाँ बरसते हैं सारी बे-रंग सोच के चेहरे लफ़्ज़ पहनें तो फिर निखरते हैं क्या ख़बर थी हमें कि लोगों की आस्तीनों में साँप पलते हैं