वो जितना मुझे आज़माता रहेगा यक़ीं मेरा उतना गँवाता रहेगा कभी पूछ ले तू रज़ा इस के मन की कहाँ तक तू अपनी चलाता रहेगा ये हैवानियत जुर्म करती रहेगी शराफ़त पे इल्ज़ाम आता रहेगा ज़माना है बहरा बचे कैसे इज़्ज़त कोई शोर कब तक मचाता रहेगा ज़माना हुआ ख़ुद में चालाक इतना तू जब तक डरेगा डराता रहेगा रहेगी मोहब्बत जवाँ मेरे दिल में तिरा दर्द जब तक सताता रहेगा ग़मों को भी हँस कर वो जी लेगा 'कलकल' ख़ुदा को जो बरतर बताता रहेगा