वो जो मुझ से ख़फ़ा नहीं होता दर्द हद से सिवा नहीं होता मेरी कोशिश को जो रज़ा मिलती लफ़्ज़ यूँ बे-सदा नहीं होता हम-ज़बाँ तो बहुत मिले लेकिन क्यूँ कोई हम-नवा नहीं होता हम अगर पहले जाग जाते तो सानेहा वो हुआ नहीं होता आग बस्ती की गर बुझाता तू उस का घर भी जला नहीं होता कोई कोशिश कभी तो की होती तुम से कुछ भी छुपा नहीं होता फ़िक्र होती नहीं जो रोटी की कोई अपना जुदा नहीं होता