वो जो तेरी तलब में ईज़ा थी मेरे हर दर्द का मुदावा थी मैं तमाशा था इक जहाँ के लिए उस पे भी हसरत-ए-तमाशा थी लाख राहें थीं वहशतों के लिए किस लिए बंद राह-ए-सहरा थी मेरी रुस्वाई थी मिरी तौक़ीर मेरी तन्हाई थी मेरी साथी तज के दुनिया को जब चले 'ताइब' साथ इक आरज़ू की दुनिया थी