वो कभी माइल-ए-वफ़ा न हुआ मेरा चाहा हुआ बुरा न हुआ मर गए वस्ल-ए-दिल-रुबा न हुआ मुद्दआ' हस्ब-ए-मुद्दआ न हुआ उस से मज़मूँ बँधा न चोटी का ज़ुल्फ़-ए-जानाँ पे जो फ़िदा न हुआ क़ैद-ए-मर्क़द मिली पस-ए-मुर्दन जान दे कर भी में रिहा न हुआ तू ने यारब ज़बाँ तो दी मुझ को शुक्र तेरा मगर अदा न हुआ दम निकलता बुतों पे क्या लेकिन ये भी इक मौत का बहाना हुआ फ़ैज़-ए-'इशरत' से अब तू ऐ 'नादिर' में भी इक शाएर-ए-यगाना हुआ