वो क़लंदरों में शुमार है ग़म-ए-ज़ीस्त से उसे प्यार है मिरे बाग़-ए-दिल के नसीब में फ़क़त इंतिज़ार-ए-बहार है ग़म-ए-आशिक़ी से जो पूछिए ये जहाँ भी उजड़ा दयार है जिसे ताज कहता है ये जहाँ वो हक़ीक़तन तो मज़ार है ये अजब नहीं कि जुनून-ए-इश्क़ सर-ए-दार था सर-ए-दार है मैं जो हक़-हलाल की रह पे हूँ मुझे ख़्वाब में भी क़रार है मिरी धड़कनें भी हैं बहर में मुझे शाइ'री का ख़ुमार है