वो कौन है जो हलाक-ए-निगाह-ए-नाज़ नहीं मैं कुछ नहीं हूँ अगर चश्म-ए-इम्तियाज़ नहीं कमाल-ए-इश्क़ में भी लज़्ज़त-ए-मजाज़ नहीं तड़प रहा हूँ मगर दिल में सोज़-ओ-साज़ नहीं तो क्यूँ वो गर्मी-ए-महफ़िल वो दिल-कशी न रही नियाज़-मंद अगर जान-ए-बज़्म-ए-नाज़ नहीं ख़लिश के साथ तड़प है तड़प के साथ ख़लिश हमारे ज़ाहिर-ओ-बातिन में इम्तियाज़ नहीं ये वो कहे जो ज़मीरों का पढ़ने वाला है तलब नहीं है जो दस्त-ए-तलब दराज़ नहीं अभी करम में यक़ीनन सितम भी शामिल है कि दिल मआ'ल-ए-मोहब्बत से बे-नियाज़ नहीं पड़ा है इन से मोहब्बत का वास्ता 'नख़शब' कि जिन को इश्क़-ओ-हवस में कुछ इम्तियाज़ नहीं