वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया ज़ाद-ए-सफ़र गया है सफ़र तो नहीं गया मौसम ही सिर्फ़ बदला है उस के मिज़ाज का शाख़-ए-समर कटी है समर तो नहीं गया दुनिया समझ रही है उसे बेवफ़ा मगर रस्ते से उठ गया है वो घर तो नहीं गया रह रह के पूछती है कफ़-ए-पा से चाँदनी इस राह से वो रश्क-ए-क़मर तो नहीं गया दश्त-ए-जुनूँ पे गिर्या-ए-बाराँ था रात भर दीवाना तेरा जाँ से गुज़र तो नहीं गया किस बात से ख़जिल हूँ सर-ए-कोह-ए-तूर मैं ताब-ए-नज़र में ज़ौक़-ए-नज़र तो नहीं गया बिखरे पड़े हैं फ़र्श पे वादे नए नए आईना-गर से आइना डर तो नहीं गया तारिक़-'नईम' रहने लगे हो मलूल से कोई तुम्हारा ख़्वाब बिखर तो नहीं गया