वो ख़्वाब ख़्वाब फ़ज़ा वो नगर किसी का था मुसाफ़िरत तो मिरी थी सफ़र किसी का था नज़र-गुरेज़ रहीं इस तरह मिरी आँखें कि जैसे मेरा नहीं मेरा घर किसी का था लहू तो मेरा छुपा था कली की मुट्ठी में खुले गुलाब पे हक़्क़-ए-नज़र किसी का था बहुत बुलंद मिरी पासबाँ फ़सीलें थीं धड़कते दिल को मिरे फिर भी डर किसी का था ये हाथ पाँव मिरे थे ज़बान मेरी थी जो दे रहा था इशारे वो सर किसी का था