वो कोई हुस्न है जिस हुस्न का चर्चा न हुआ उस का क्या इश्क़ है जो इश्क़ में रुस्वा न हुआ तेरा आना जो मिरे पास मसीहा न हुआ था जो बीमार किसी से मगर अच्छा न हुआ यूँ तो मुश्ताक़ रहे कितना ही उस कूचे के पर गुज़र मेरे सिवा और किसी का न हुआ शायद आ जाए कभी देखने वो रश्क-ए-मसीह मैं किसी और से इस वास्ते अच्छा न हुआ शे'र कहते हुए इक उम्र हुइ 'ताबाँ' को हाए अफ़्सोस कि इस काम मैं पुख़्ता न हुआ