वो कोई सच था या झूटा कोई फ़साना था हमें मिला क्यूँ नहीं जिस को हम ने चाहा था मैं क्या कहूँ कि वो क़ातिल था या मसीहा था मगर अदाओं से लगता बड़ा ही प्यारा था हसीन आस को इन क़ुर्बतों ने तोड़ दिया सराब निकला जिसे दरिया हम ने समझा था महक रहा है अभी तक हिनाई हाथों सा हथेली पे जो मिरा नाम तुम ने लिक्खा था मिले थे दोस्त कई राह में हसीन मगर किसी को साथ मिरे दूर तक न चलना था