वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है न देखे तुझे कोई अंधा नहीं है कहाँ दामन-ए-हुस्न आशिक़ से अटका गुल-ए-दाग़-ए-उल्फ़त में काँटा नहीं है किया है वहाँ उस ने पैमान-ए-फ़र्दा यहाँ है वो शब जिस को फ़र्दा नहीं है वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी ये सच है तो उन का भरोसा नहीं है मिरी ज़ीस्त क्यूँ कर न हो जावेदानी जो मरता है उस पर वो मरता नहीं है वही ख़ाक उड़ाना वही गर्दिशें हैं ये माना कि आशिक़ बगूला नहीं है गुलू-गीर है उन भवों का तसव्वुर गरेबान में अपने कंठा नहीं है इन आँखों को जब से बसारत मिली है सिवा तेरे कुछ मैं ने देखा नहीं है मिरी हसरतें इस क़दर भर गई हैं कि अब तेरे कूचे में रस्ता नहीं है वो दिल क्या जो दिलबर की सूरत न पकड़े वो मजनूँ नहीं है जो लैला नहीं है कमाल-ए-ज़ुहूर-ए-तजल्ली से जाना जो पिन्हाँ नहीं है वो पैदा नहीं है