वो मक़ाम-ए-दिल-ओ-जाँ क्या होगा तू जहाँ आख़िरी पर्दा होगा मंज़िलें रास्ता बन जाती हैं ढूँडने वालों ने देखा होगा साए में बैठे हुए सोचते हैं कौन इस धूप में चलता होगा तेरी हर बात पे चुप रहते हैं हम सा पत्थर भी कोई क्या होगा अभी दिल पर हैं जहाँ की नज़रें आइना और भी धुँदला होगा राज़-ए-सर-बस्ता है महफ़िल तेरी जो समझ लेगा वो तन्हा होगा इस तरह क़त-ए-तअल्लुक़ न करो इस तरह और भी चर्चा होगा बा'द मुद्दत के चले दीवाने क्या तिरे शहर का नक़्शा होगा सब का मुँह तकते हैं यूँ हम जैसे कोई तो बात समझता होगा फूल ये सोच के खिल उठते हैं कोई तो दीदा-ए-बीना होगा ख़ुद से हम दूर निकल आए हैं तेरे मिलने से भी अब क्या होगा हम तिरा रास्ता तकते होंगे और तू सामने बैठा होगा ख़ुद को याद आने लगे हम 'बाक़ी' फिर किसी बात पे झगड़ा होगा