वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब दिल की गिरह के साथ खुलेगा मिरा नसीब खाएँगे रहम आप अगर दिल बिगड़ गया हो जाएगा मिलाप अगर लड़ गया नसीब शब भर जमाल-ए-यार हो आँखों के रू-ब-रू जागें नसीब जिस को हो ये रतजगा नसीब पहरा दिया है दौलत-ए-बेदार-ए-हुस्न का सोए जो वो बग़ल में तो जागा मिरा नसीब पहुँचा के मेरी ख़ाक दर-ए-यार तक सबा रुख़्सत हुई ये कह कर अब आगे तिरा नसीब ऐ दिल वो तुझ से कहते हैं मेरी बला मिले ऐसे तिरे नसीब कहाँ ऐ बला-नसीब जब दर्द-ए-दिल बढ़ा तो उन्हें रहम आ गया पैदा हुई चमक तो चमकने लगा नसीब दुश्मन को लुत्फ़-ए-वस्ल 'हसन' को ग़म-ए-फ़िराक़ हर शख़्स का जुदा है मुक़द्दर जुदा नसीब