वो मेरे ख़्वाब की ताबीर तो बताए मुझे मैं धूप में हूँ मगर ढूँडते हैं साए मुझे मैं रौशनी की किसी सल्तनत का शहज़ादा मगर चराग़ मिले हैं बुझे-बुझाए मुझे वो जा चुका है तो नक़्श-ए-क़दम भी मिट जाएँ बिछड़ गया है तो अब याद भी न आए मुझे किसी जवाज़ का होना ही क्या ज़रूरी है अगर वो छोड़ना चाहे तो छोड़ जाए मुझे तो मोतियों में न तुलने का रंज ख़त्म हुआ किसी की आँख के आँसू ख़रीद लाए मुझे लरज़ते काँपते हाथों को फिर न हो ज़हमत ख़ुदा करे कि यही ज़हर रास आए मुझे मैं चाहता हूँ कभी यूँ भी हो कि मेरी तरह वो मुझ को ढूँडने निकले मगर न पाए मुझे