वो मेरी बेकसी पर काश थोड़ा मेहरबाँ होता परेशाँ-हाल हो कर मैं यक़ीनन शादमाँ होता यक़ीं कर कि मैं तुझ से भी ज़ियादा चाहता उस को जो मेरे जैसा तेरा और कोई क़द्र-दाँ होता खरे खोटे का अंदाज़ा तुझे भी कुछ तो लग जाता रक़ीब-ए-रू-सियह का जो लिया गर इम्तिहाँ होता न होता दश्त-ओ-वीराना अगर सहरा-ए-बे-पायाँ ग़रीब आशिक़ कोई आबाद फिर जा कर कहाँ होता मकाँ इस दौर में पॉकेट एडीशन बनते हैं 'ख़ुशतर' कोई दालान आँगन और कोई साएबाँ होता