वो मिरी दुनिया का मालिक था मगर मेरा न था मैं ने इस अंदाज़ पर पहले कभी सोचा न था एक मुद्दत तक रहा ख़ुश-फ़हमियों में मुब्तला आईने के रू-ब-रू जब तक मिरा चेहरा न था तोहमतों को एक ऐसे अजनबी की थी तलाश जो कभी घर से निकल कर राह में ठहरा न था हो चुकी थी शोहरतें रुस्वाइयों से हम-कनार भूल जाता मैं जिसे वो सानेहा ऐसा न था मेरी नज़रों में है ख़ाका वो भी हुस्न-ए-दोस्त का जिस को लोगों ने अभी तक ज़ेहन में सोचा न था मैं उठूँ तो रंग लाएँ तज़्किरों के सिलसिले लोग इतना तो कहें कि आदमी अच्छा न था लोग इस अंदाज़ में देते हैं दुनिया की मिसाल मैं तो जैसे तजरबों के दौर से गुज़रा न था इक नया एहसास देते हैं वो अहल-ए-संग को आबरू के साथ रहना शहर में अच्छा न था क्या असर-अंदाज़ होता उस पे अफ़्साना 'नज़र' लफ़्ज़ भी माँगे हुए मफ़्हूम भी अपना न था