वो मिस्ल-ए-आईना दीवार पर रक्खा हुआ था जो इक इनआ'म मेरी हार पर रक्खा हुआ था मैं बाएँ हाथ से दुश्मन के हमले रोकता था कि दायाँ हाथ तो दस्तार पर रक्खा हुआ था वही तो एक सहरा-आश्ना था क़ाफ़िले में वो जिस ने आबले को ख़ार पर रक्खा हुआ था विसाल ओ हिज्र के फल दूसरों को उस ने बख़्शे मुझे तो रोने की बेगार पर रक्खा हुआ था मुसल्लम थी सख़ावत जिस की दुनिया भर में उस ने मुझे तनख़्वाह-ए-बे-दीनार पर रक्खा हुआ था ख़त-ए-तक़्दीर के सफ़्फ़ाक ओ अफ़्सुर्दा सिरे पर मिरा आँसू भी दस्त-ए-यार पर रक्खा हुआ था फ़लक ने उस को पाला था बड़े नाज़-ओ-निअ'म से सितारा जो तिरे रुख़्सार पर रक्खा हुआ था वही तो ज़िंदा बच के आए हैं तेरी गली से जिन्हों ने सर तिरी तलवार पर रक्खा हुआ था वो सुब्ह ओ शाम मिट्टी के क़सीदे भी सुनाता और उस ने हाथ भी ग़द्दार पर रक्खा हुआ था तिरे रस्ते में मेरी दोनों आँखें थीं फ़रोज़ाँ दिया तो बस तिरे इसरार पर रक्खा हुआ था