वो नहीं यारो किसी भी बात में जीत कर भी जो मज़ा है मात में हर किसी के गिर्द लोगों का हुजूम हर कोई तन्हा है अपनी ज़ात में देखने वाले इन्हें पढ़ ग़ौर से एक इक दुनिया है इन ज़र्रात में खा गई अब तक ये कितने आफ़्ताब राज़ है मुज़्मर अजब इस रात में बे-गुनाहों के लहू की सुर्ख़ियाँ जा बजा बिखरी हैं अख़बारात में आओ काटें केक को इमसाल भी आँसुओं की इस भरी बरसात में बच के रहना हम से ऐ दश्त-ए-जुनूँ उस का साया है हमारे सात में ऐ सफ़ीरान-ए-ज़िया अब तुम कहो अब के सूरज है हमारे हात में बाब में उस के है 'ताहिर' आज भी एक सन्नाटा सा काएनात में