वो पास आए आस बने और पलट गए कितने ही पर्दे आँखों के आगे से हट गए हर बाग़ में बहार हुई ख़ेमा-ज़न मगर दामन के साथ साथ यहाँ दिल भी फट गए गुमराहियों का लपका कुछ ऐसा पड़ा कि हम मंज़िल क़रीब आई तो रहबर से कट गए दिल दे के इस तरह से तबीअ'त सँभल गई गोया तमाम उम्र के झगड़े निपट गए बरसों के प्यासे दश्त-नवर्दों से पूछिए उन बादलों का प्यार जो घिरते ही छट गए बस में रहें न जब ग़म-ए-दौराँ की वुसअ'तें हम लोग अपने गोशा-ए-दिल में सिमट गए 'शोहरत' उन्हें भुलाने की कोशिश जो की कभी दामान-ए-दिल से सैंकड़ों फ़ित्ने लिपट गए