वो पास आए तो दिल बे-क़रार होने लगा सुकून-ए-दिल का मिरे इंतिशार होने लगा है राज़ क्या ऐ मोहब्बत बता दे हम को ज़रा क़रीब आने पे क्यूँ इंतिज़ार होने लगा ज़रा समझने दे साक़ी ये माजरा क्या है कि जाम पीने से पहले ख़ुमार होने लगा फिर आसमान-ए-मुक़द्दर पे कोई हलचल है कि ना-गहाँ मिरे दिल पे ग़ुबार होने लगा कभी वो आ भी सकेंगे हमें यक़ीं तो न था मिले जो ख़्वाब में कुछ ए'तिबार होने लगा किया जो याद उन्हें आ गए तसव्वुर में है शे'र कुछ तो हमें इख़्तियार होने लगा बहार है कि ख़िज़ाँ 'शौक़' हम यही जाने कि उन के आने से रंग-ओ-बहार होने लगा