वो पर्दा ज़ीनत-ए-दर के सिवा कुछ और नहीं हमारे हुस्न-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं सुराग़-ए-काहकशाँ अहल-ए-दिल को मिल ही गया तुम्हारी राहगुज़र के सिवा कुछ और नहीं न जाने कौन सा ईफ़ा-ए-अहद का दिन हो तुम्हें तो शाम-ओ-सहर के सिवा कुछ और नहीं मुरादें इश्क़ में सब को मिलें मगर मुझ को नसीब दर्द-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं ये किस तिलिस्म में मुझ को हयात ले आई जहाँ फ़रेब-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं न पूछिए मिरी नाकामी-ए-मनाज़िल-ए-शौक़ हुसूल-ए-गर्द-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं वो ना-मुराद मोहब्बत हूँ जिस के दामन में सरिश्क-ए-दीदा-ए-तर के सिवा कुछ और नहीं हयात-ए-इश्क़ की रूदाद क्या कहूँ ऐ 'सैफ़' अज़ाब-ए-शाम-ओ-सहर के सिवा कुछ और नहीं