वो रक़्स करती मौसमों की शोख़ियाँ नहीं रहीं है शाख़-ए-गुल वही मगर वो तितलियाँ नहीं रहीं फ़ज़ा में जाने नफ़रतों का कैसा ज़हर घुल गया मोहब्बतों की सब्ज़ सब्ज़ क्यारियाँ नहीं रहें विदाअ' हो के भी है आज लड़कियों को फ़िक्र ये क़रीब उन की राज़-दाँ सहेलियाँ नहीं रहीं मोआमला अजीब सा ये दोस्तों में हो गया रक़ीब जब से बन गए तो यारियाँ नहीं रहीं हमारे अहद में कुछ ऐसे मसअले हैं ज़ीस्त के दिलों में इश्क़ की निशात-कारियाँ नहीं रहीं ख़ुलूस-ओ-प्यार आज भी वही है ख़ानदान में बस इतना है 'सुख़न' कि जाँ-निसारियाँ नहीं रहीं