वो रंग-ए-रुख़ वो आतिश-ए-ख़ूँ कौन ले गया ऐ दिल तिरा वो रक़्स-ए-जुनूँ कौन ले गया ज़ंजीर आँसुओं की कहाँ टूट कर गिरी वो इंतिहा-ए-ग़म का सुकूँ कौन ले गया दर्द-ए-निहाँ के छीन लिए किस ने आईने नोक-ए-मिज़ा से क़तरा-ए-ख़ूँ कौन ले गया जो मुझ से बोलती थीं वो रातें कहाँ गईं जो जागता था सोज़-ए-दरूँ कौन ले गया किस मोड़ पर बिछड़ गए ख़्वाबों के क़ाफ़िले वो मंज़िल-ए-तरब का फ़ुसूँ कौन ले गया जो शम्अ इतनी रात जली क्यूँ वो बुझ गई जो शौक़ हो चला था फ़ुज़ूँ कौन ले गया