वो साथ आया तो मेरी उड़ान बैठ गई न जाने क्या हुआ मुझ में थकान बैठ गई फिर इस के बाद परिंदे ज़मीं पे गिरने लगे किसी की आह सर-ए-आसमान बैठ गई क़रीब था कि तअ'ल्लुक़ बहाल हो जाता अजब ख़मोशी मगर दरमियान बैठ गई हवेली छोड़ के सब लोग चल दिए लेकिन हर एक हुजरे में इक दास्तान बैठ गई बुलंदियों पे पहुँच कर मैं ख़ुश बहुत थी मगर ज़मीं की सम्त जो देखा तो जान बैठ गई ज़बाँ-दराज़ों से 'नुसरत' कहाँ तलक लड़ती सो दिल पे सब्र की रख कर चटान बैठ गई