वो सर से पाँव तलक चाहतों में डूबा था वो शख़्स क्या था मोहब्बत का इस्तिआरा था न चाँद था न सितारा न फूल था न धनक वो फिर भी हुस्न की दुनिया में इक इज़ाफ़ा था मुझे पता ही नहीं कब वो लफ़्ज़-ए-कुन बन कर मिरे वजूद के दीवार-ओ-दर में गूँजा था अजीब बात है देखा न था किसी ने उसे अजीब बात है घर घर उसी का चर्चा था किसी से कोई ग़रज़ थी न कोई आस उस को वो सारी भीड़ से कट कर अकेला रहता था समुंदरों से थी गहराई उस की सोचों में वो अपनी ज़ात में इक काएनात जीता था 'ख़ुमार' नाम के शाइ'र से मिल चुका हूँ मैं उदासियों के घने जंगलों में रहता था