वो शुस्ता शुस्ता गेसू पाकीज़ा-तर निगाहें साए में मय-कदे के आबाद ख़ान-क़ाहें पास-ए-अदब से कब तक नीची रहें निगाहें शफ़्फ़ाफ़ आस्तीनें जल्वा-फ़राश बाहें इन के लिए नहीं हैं मौज़ूँ अलम कराहें ये गर्म गर्म आँसू ये सर्द सर्द आहें गुज़रे हैं वो इधर से तस्दीक़ हो रही है गुल है न गुल्सिताँ है महकी हुई हैं राहें याद आए हैं सितम जब याद आ गए करम भी मायूस हो चले थे फिर मिल गईं पनाहें ख़ुश्बू-ए-गुल से मेरा दिल बैठने लगा है क्यूँ सुब्ह सुब्ह आएँ फूलों के लब पे आहें 'मानी' की पाक-बाज़ी इस दौर में न चलती निगराँ रही हैं दिल की हर वक़्त वो निगाहें