वो तो हश्र था मगर उस की अब वो शबाहतें भी चली गईं जो रहें तो शहर में क्या रहें कि क़यामतें भी चली गईं तिरे दम से थीं सभी रौनक़ें वो हबीब थे कि रक़ीब थे वो क़राबतें तो गई ही थीं वो रिक़ाबतें भी चली गईं तिरा क़ुर्ब गरचे था जाँ-गुसिल वही क़ुर्ब था मिरी ज़िंदगी तिरे बाद मर्ग-ओ-हयात की वो रिफाक़तें भी चली गईं मिरी आरज़ू थी कि जाँ-ब-कफ़ मिरी जुस्तुजू कि नफ़स ब-पा अब ऐ ज़िंदगी मुझे छोड़ जा कि ये हालतें भी चली गईं तू ने दी जो दर्द की दौलतें वो ग़ज़ल ग़ज़ल न समा सकीं मिरे हाथ से तिरे हुस्न की ये विरासतें भी चली गईं उसे देख देख के सोचना उसे सोच सोच के देखना वो अज़ीज़ क्या कि अज़ीज़-तर कई आदतें भी चली गईं