वो तो मेरा अपना था जिस ने मुझ को लूटा था मौत पे मेरी रोता था मेरा क़ातिल भोला था सब जग सूना सूना था जब मैं तुझ से बिछड़ा था धुँद सी छाई थी हर-सू कल का सूरज कैसा था कोई बिरहन गाती थी दर्द भरा इक नग़्मा था डरता डरता सा मुझ से मेरा अपना साया था मैं बर्फ़ानी रातों में हिज्र की आग में जलता था राह-ए-वफ़ा में पैर न रख इक दीवाना कहता था इंसानों के जंगल में 'आरिफ़' बिल्कुल तन्हा था