वो तो मुझ में ही निहाँ था मुझे मालूम न था ख़ून बन कर वो रवाँ था मुझे मालूम न था इतने मजरूह थे जज़्बात हमारे जिस पर चर्ख़ भी महव-ए-फ़ुग़ाँ था मुझे मालूम न था प्यास शिद्दत की थी सहरा भी तड़प जाता था इम्तिहाँ सर पे जवाँ था मुझे मालूम न था पैर तो पैर यहाँ रूह के छाले निकले दूर इतना भी मकाँ था मुझे मालूम न था दिल भी होता है सुना करते थे हर सीने में दर्द भी उस में निहाँ था मुझे मालूम न था इश्क़ के बहर में ग़ोता तो लगाया लेकिन बअ'द में उस के कहाँ था मुझे मालूम न था फ़ित्ना-गर लूटने वाला सर-ए-बाज़ार यहाँ इतना शीरीन-ज़बाँ था मुझे मालूम न था हुस्न-ए-उल्फ़त को समाए हुए सीने में 'निसार' दिल में इक दर्द जवाँ था मुझे मालूम न था