वो तुम तक कैसे आता जिस्म से भारी साया था सारे कमरे ख़ाली थे सड़कों पर भी कोई न था पीछे पीछे क्यूँ आए आगे भी तो रस्ता था खिड़की ही में ठिठुर गई काली और चौकोर हवा दीवारों पर आईने आईनों में सब्ज़ ख़ला बैठी थी वो कुर्सी पर दाँतों में उँगली को दबा बोटी बोटी जलती थी उस का बदन अँगारा था ते के ऊपर दो नुक़्ते बे के नीचे इक नुक़्ता चाय में उस के पिस्ताँ थे मेरा बदन पानी में था तन्हाई की रानों में सुब्ह तलक मैं क़ैद रहा 'आदिल' अब शादी कर लो सत्ताईस्वाँ ख़त्म हुआ