वाक़िफ़ नहीं तो उस के लबों को कँवल न लिख अल्फ़ाज़ को ख़िज़ाब लगा कर ग़ज़ल न लिख मोमिन के साथ सिर्फ़ ख़ुदा है सनम नहीं उस बेकसी को उक़्दा-ए-मुश्किल का हल न लिख लफ़्ज़ों में कब सिमटता है वो सेहर-ए-बे-कराँ शे'रों को हुस्न-ए-दोस्त का नेमुल-बदल न लिख इंसान आप अपनी तबाही को कम नहीं दुनिया की इस तबाही को कार-ए-अजल न लिख 'सहबा' के साथ साथ न चल साया-ए-ज़मीर ऐ मेरे हम-नशीं मिरी फ़र्द-ए-अमल न लिख