वफ़ा कर मगर उस्तुवारी न रख कोई बोझ सीने पे भारी न रख मोहब्बत के बदले मोहब्बत न माँग कि ये सिलसिला कारोबारी न रख किसी और हीले से कर मुस्तफ़ीज़ फ़क़त रस्म-ए-बादा-गुसारी न रख तू आया है तो हर्फ़-ए-मतलब पे आ ज़बाँ पर बहुत ख़ाकसारी न रख सलामत नहीं सर तो दस्तार क्या बहुत ऊँची अपनी अटारी न रख हक़ीक़त तुझे मार डालेगी सुन 'मुजीबी' बहुत जानकारी न रख