बड़ी उदास हैं शामें तिरे विसाल के बा'द कि ज़ख़्म फिर से उभर आए इंदिमाल के बा'द तुम्हारी बात ही तस्लीम की बहर-सूरत ज़माने भर के दिमाग़ों ने क़ील-ओ-क़ाल के बा'द कहाँ हूँ कौन हूँ कैसा हूँ मैं कहाँ का हूँ कोई ख़याल न आया तिरे ख़याल के बा'द हुई नसीब न इज़्ज़त हयात में जिस को सजा हुआ था वही घर में इंतिक़ाल के बा'द भुला सकेगी न सूरज की दास्तान ज़मीन गया है ख़ेमा-ए-शब में वो किस कमाल के बा'द ख़मोशियों की ज़बानें हैं सुर्ख़ आँखों में अजीब तर्ज़-ए-तकल्लुम है इक सवाल के बा'द