वफ़ा ने झूम के जब तेरे गीत गाए हैं क़दम उफ़ुक़ पे अंधेरों के लड़खड़ाए हैं तिरे क़रीब पहुँच कर भी कम नहीं होते ग़म-ए-हयात ने जो फ़ासले बढ़ाए हैं बहुत तवील सही राह-ए-जुस्तुजू लेकिन बहुत हसीन तिरे गेसुओं के साए हैं तिरी निगाह मुदावा न बन सकी जिन का तिरी तलाश में ऐसे भी ज़ख़्म खाए हैं पड़ा है अक्स जो रुख़्सार-ए-शोला-ए-मय का तो आईने तिरी यादों के जगमगाए हैं मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ग़म की राह में 'जामी' नए चराग़ मिरी फ़िक्र ने जलाए हैं