वही दिल को है यार-ए-जानी के साथ जो रिश्ता है दरिया का पानी के साथ हमीं रह गए बे-ज़बानी के साथ हुए ख़त्म सब उस कहानी के साथ बढ़ा और गिर्ये से सोज़-ए-दरूँ भड़कती गई आग पानी के साथ कहीं ये ज़माने की रौ तो नहीं सुबुक-सैर क्या है गिरानी के साथ हर इक आन उस का अलग रंग है उसे देखिए किस निशानी के साथ चलो मौज वो भी किनारे लगी उलझती बहुत थी रवानी के साथ भिड़ा कर तो देखो मज़ा आएगा किसी दिन नई को पुरानी के साथ