वही ख़्वाबीदा ख़ामोशी वही तारीक तन्हाई तुम्हें पा कर भी कोई ख़ास तब्दीली नहीं आई अगर जाँ से गुज़र जाऊँ तो मैं ऊपर उभर आऊँ कि लाशों को उगल देती है दरियाओं की गहराई खड़ा है दश्त-ए-हस्ती में अगरचे नख़्ल-ए-जाँ लेकिन गुल-ए-गोयाई बाक़ी है न कोई बर्ग-ए-बीनाई मोहब्बत में भी दिल वाले सियासत कर गए 'असलम' गले में हार डाले पाँव में ज़ंजीर पहनाई