वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था मिरा ग़म भी शामिल-ए-हाल था ये पता न था वही शाम आख़िरी शाम थी ये ख़बर न थी वही वक़्त वक़्त-ए-ज़वाल था ये पता न था मुझे कर गया जो तही तही भरे शहर में वो मिरा ही दस्त-ए-सवाल था ये पता न था मुझे बुत बना के चले गए कि न रो सकूँ उन्हें मेरा इतना ख़याल था ये पता न था वो हवा-ए-मर्ग थी जिस से दिल का दिया बुझा मिरे दिल का बुझना कमाल था ये पता न था मैं 'मुजीबी' ढूँडूँ कहाँ उसे वो कहाँ मिले वो तो आप अपनी मिसाल था ये पता न था