वही सर है वही सौदा वही वहशत है मियाँ अब भी आ जाओ कि दिल की वही ख़ल्वत है मियाँ वुसअ'त-ए-दीद सिमटने ही नहीं पाती है चश्म-ए-आहू से हमें आज भी निस्बत है मियाँ उम्र जब हिज्र-ए-मुसलसल की मसाफ़त में कटी ये भी कट जाएगी इक दिन शब-ए-फ़ुर्क़त है मियाँ कू-ए-दिलदार में बाक़ी नहीं शोरीदा-सराँ शहर दरयूज़ा-गर-ए-कूचा-ए-शोहरत है मियाँ क्यूँ न हम मौजा-ए-हैरत से लिपट कर सोवें वस्ल अब तेरे लिए भी तो मशक़्क़त है मियाँ तुम ने क्या देखे नहीं शम्स-ओ-क़मर नेज़ों पर जश्न-ए-ज़ुल्मात पे अब कौन सी हैरत है मियाँ फ़र्क़-ए-ताबाँ है तिरा मतला-ए-ख़ुर्शीद मगर तेरे काकुल में छुपी शाम-ए-क़यामत है मियाँ दश्त-ए-हस्ती में बहुत आबला-पाई है 'नदीम' सरहद-ए-मर्ग-ए-मुसलसल तो अज़िय्यत है मियाँ