वही थी कल भी पसंद और वही है आज पसंद अलग मिज़ाज है मेरा अलग मिज़ाज पसंद मैं क्या करूँ कि मिरी सोच मुख़्तलिफ़ है बहुत मैं क्या करूँ मुझे आया नहीं समाज पसंद मैं अपनी राह निकालूँगा अपनी मर्ज़ी से मुझे नहीं हैं ज़माने तिरे रिवाज पसंद ये मेरा दिल मिरी आँखें ये मेरे ख़्वाब अज़ाब उठा ऐ इश्क़ तुझे जो भी है ख़िराज पसंद महाज़-ए-इश्क़ पे ख़ुद ही शिकस्त मानी है 'ज़ुबैर' दिल पे हुआ है किसी का राज पसंद