अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे वो ज़िंदगी है आग का दरिया कहें जिसे हर-चंद शहर शहर है जश्न-ए-सहर मगर वो रौशनी कहाँ है सवेरा कहें जिसे जो चारागर थे वो भी हुए क़ातिल-ए-हयात अब कौन है कि अपना मसीहा कहें जिसे दीवार-ओ-दर पे सब्त हैं नक़्श-ओ-निगार-ए-यार अपना मकान है कि अजंता कहें जिसे इस तरह ताबनाक है वो सज्दा-गाह-ए-शौक़ जान-ए-हरम कि जान-ए-कलीसा कहें जिसे 'वाहिद' तुम्हें जो ख़ाहिश-ए-नाम-ओ-नुमूद हो वो शाइ'री करो कि मुअम्मा कहें जिसे