क़स्में वा'दे रह जाते हैं By Ghazal << ऐ नसीम-ए-सहरी हम तो हवा ह... मोहब्बत के तआ'क़ुब मे... >> क़स्में वा'दे रह जाते हैं इंसाँ आधे रह जाते हैं ख़त से ख़ुशबू उड़ जाती है काग़ज़ सारे रह जाते हैं रब की मर्ज़ी ही चलती है और इरादे रह जाते हैं लब पर उँगली रख लेती हो हम चुप साधे रह जाते हैं उस के रोब-ए-हुस्न के आगे मारे बाँधे रह जाते हैं Share on: