वक़्त क़ाएम कोई रिश्ता नहीं रहने देता मेरा ग़म क्यों मुझे तन्हा नहीं रहने देता तिश्नगी ग़ैर का एहसान उठाती लेकिन मेरा आँसू मुझे प्यासा नहीं रहने देता अब मुक़द्दर में कहाँ अपनी ज़ियारत करना तुझ से ग़ाफ़िल कोई लम्हा नहीं रहने देता ग़ैर को अपना बनाने दे ज़माना कैसे ये तो अपने को भी अपना नहीं रहने देता बाप कर देता है औलाद की ख़्वाहिश पूरी ज़िद मगर बाप की बेटा नहीं रहने देता तंग-दस्ती को समझता हूँ ग़नीमत 'शाएक' वर्ना यूँ चैन से पैसा नहीं रहने देता