नज़्अ' में प्यार से क्यूँ पूछते हो तुम मुझ को दम लबों पर है नहीं ताब-ए-तकल्लुम मुझ को क़त्ल ग़ुस्से में करो फेर के मुँह तुम मुझ को देखना देख न ले चश्म-ए-तरह्हुम मुझ को अभी बैअ'त मैं करूँ दस्त-ए-सुबू पर साक़ी ले चलें हाथ पकड़ कर जो सू-ए-ख़ुम मुझ को तब शब-ए-वस्ल तिरा शुक्र अदा हो यारब बहर-ए-तस्बीह मिलें दाना-ए-अंजुम मुझ को ज़र्फ़ आली है मिरा अर्श-ए-बरीं पर है दिमाग़ जाम ख़ुर्शीद का गर्दूं का मिले ख़ुम मुझ को