वस्ल मंज़ूर न हो गर तो इजारा क्या है दूसरे दिल पे भला ज़ोर हमारा क्या है रहज़नों को ये दिया राह में धोका मैं ने माल-ओ-ज़र सब ये तुम्हारा है हमारा क्या है वस्ल इक रात का या ख़ून बहाना मेरा तुम को इन दोनों में ऐ जान गवारा क्या है ज़हर किस तरह न खाऊँ मैं शब-ए-फ़ुर्क़त में जान देने के सिवा हिज्र में चारा क्या है मिलिए ग़ैरों से बहुत ख़ूब न सुनिए कहना ज़क उठाएँगे हुज़ूर आप हमारा क्या है टुकड़े बर्छी से करो या हदफ़-ए-तीर करो जिगर-ओ-दिल ये तुम्हारे हैं हमारा क्या है जान देने को अबस मना मुझे करते हो इस में नुक़सान मिरी जान तुम्हारा क्या है आप पर हम हों फ़िदा आप हों ग़ैरों पे निसार सच है दुनिया में किसी दिल पे इजारा क्या है क्यूँकर उस शोख़ को अपना मैं करूँ ऐ 'फ़ाख़िर' तुम्हीं बतलाओ किसी दिल पे इजारा क्या है