वाइ'ज़ के मैं ज़रूर डराने से डर गया जाम-ए-शराब लाए भी साक़ी किधर गया बुलबुल कहाँ बहार कहाँ बाग़बाँ कहाँ वो दिन गुज़र गए वो ज़माना गुज़र गया ऐसी हवा चली मिरी आहों की रात को सब आसमाँ पे ख़िर्मन-ए-अंजुम बिखर गया अच्छा हुआ जो हो गए वहदत-परस्त हम फ़ित्ना गया फ़साद गया शोर-ओ-शर गया का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर तू किस तरफ़ था ध्यान हमारा किधर गया फिर सैर-ए-लाला-ज़ार को हम ऐ 'सबा' चले आई बहार दाग़-ए-जुनूँ फिर उभर गया